शिक्षा मात्र ज्ञान अर्जित व संप्रेक्षित करना नहीं, बल्कि एक ऐसी अनूठी कला है जो इसे सीख लेता है और प्रयोग करता है, वही एक परिपक्व और कुशल शिक्षक बनता है | शिक्षक बनना आसान नहीं होता, खासकर तब जब कोई युवा 12वीं पास करने के बाद इस जिम्मेदारी को निभाने की कोशिश करता है। क्योंकि अभी वे स्वयं ही अपने सपनों की उड़ान भर रहे होते हैं और इस दशा में उनसे यह अपेक्षा की जाए कि वे औरों के पंखों को उड़ान दें| शिक्षार्थी जीवन से बाहर निकल कर तुरंत एक कुशल और अनुभवी शिक्षक बनना, यह थोड़ा मुश्किल होता है | हम अक्सर यही सोचते हैं शिक्षक बनना आसान होता है| अगर हमें अपने विषय का अच्छा ज्ञान है, तो हम अच्छे शिक्षक बन सकते हैं। लेकिन वास्तविकता इससे कहीं अधिक जटिल होती है। मैं यहाँ एक ऐसे ही युवा शिक्षक प्रशिक्षु ज्योति (नाम बदला गया है) के अनुभव साझा कर रही हूँ, जिसने अपने संघर्षों के माध्यम से सिखाने और सिखने की प्रक्रिया को नए दृष्टिकोण से समझा।
जब यह युवा प्रशिक्षु ज्योति पहली बार विद्यालय की कक्षा में बच्चों को पढ़ाने के लिए गई, तो उसके मन में उत्साह था। उसने सोचा था कि बच्चे उसकी बात ध्यान से सुनेंगे, वह उनके लिए ज्ञान का स्रोत बनेगी, और कुछ ही दिनों में एक अच्छा शिक्षक कहलाएगी । लेकिन जैसे ही उसने पढ़ाना शुरू किया, हकीकत कुछ और ही निकली। उसकी सोच और हकीकत में विरोधाभास देखने को मिला |
बच्चे शोर मचा रहे थे, कोई बातें कर रहा था, तो कोई किताबों से खेल रहा था। कुछ बच्चे विषय को समझ नहीं पा रहे थे। कुछ को पढ़ाई उबाऊ लग रही थी। कुछ बच्चों की रुचि कहीं और थी, और कुछ अनुशासनहीन थे। प्रशिक्षु ज्योति ने आवाज़ ऊँची की, लेकिन बच्चों पर कोई असर नहीं पड़ा। उसने समझाने की कोशिश की, लेकिन बच्चे ऊबने लगे। यह अनुभव उसके लिए चौंकाने वाला था। क्या उसकी तैयारी में कमी थी? क्या उसे पढ़ाने का तरीका नहीं आता था? या फिर बच्चे उसे गंभीरता से नहीं ले रहे थे? उसने सोचा कि “शायद मुझमें ही कोई कमी है।” यह आत्म-संदेह उसके आत्मविश्वास को कमज़ोर करने लगा। लेकिन उसने हार नहीं मानी। ज्योति ने महसूस किया कि पढ़ाना और सिखाना दो अलग चीजें हैं|
प्रशिक्षु ज्योति इस तनाव के साथ अपने शिक्षकों से मिली | उनके साथ उसने अपने अनुभव और तनाव के कारणों को साझा किया और फिर उसने अपने अनुभवी शिक्षकों से यह जाना कि एक शिक्षक बनने के लिए सिर्फ विषय का ज्ञान नहीं, बल्कि धैर्य, समझ और सही शिक्षण तकनीकों की भी जरूरत होती है। सिर्फ किताब से पढ़ाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि बच्चों को व्यक्तिगत रूप समझना भी जरूरी है कि वे क्या चाहते हैं? उनकी रुचि किन कामों में है ? और उनका सीखने का स्तर क्या है ? आदि |
इसके बाद प्रशिक्षु ज्योति ने अपने सिखाने के तरीको में बदलाव करने का प्रयास किया और सीधे पढ़ाने के बजाय कहानी और उदाहरणों के जरिए समझाने लगी। बच्चों से बातचीत करके उनकी रुचियों को सुना, समझा और जाना। खेल-खेल में पढ़ाने की तकनीक अपनाई। धैर्य रखा और बच्चों के सवालों को गंभीरता से लिया। धीरे-धीरे बदलाव दिखने लगा। जहाँ पहले बच्चे शोर मचाते थे, अब वे ध्यान से सुनने लगे। जहाँ पहले वे ऊब जाते थे, अब वे सवाल पूछने लगे। प्रशिक्षु ज्योति ने अपने संघर्ष से यह साबित कर दिया कि शिक्षक सिर्फ ज्ञान देने वाला नहीं, बल्कि बच्चों की सोच को समझने वाला भी होता है।
आज भी नए प्रशिक्षु शिक्षको को ज्योति की भाँति ही अपनी अपनी कक्षा में संघर्ष करना पड़ता है| जब कोई नया प्रशिक्षु शिक्षक इसी तरह की समस्याओं से जूझता है, तो मैं उनसे ज्योति के ये अनुभव साझा करती हूँ। मैं चाहती हूँ कि यह संघर्ष और सीख उन सभी तक पहुँचे,जो शिक्षक बनने का सपना देखते हैं लेकिन पहली कठिनाइयों से घबरा जाते हैं। एक अच्छा शिक्षक वही होता है, जो खुद सीखने के लिए तैयार रहता है।
लेखिका के बारे में:
डॉ चित्ररेखा, अर्थशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान में परास्नातक है । शिक्षाशास्त्र में NET एवं पी. एच. डी की उपाधि प्राप्त की है । 2022 मे SCERT से Best State Teacher Educator प्राप्त कर चुकी हैं| वर्तमान में SCERT/DIET दिल्ली में Assistant प्रोफेसर कार्यरत हैं । शिक्षा से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर लगभग 25 से अधिक लेख /शोध लेख लिखे एव प्रस्तुत किए हैं जो को NCERT की विभिन्न पत्रिकाओं व अन्य पत्रिकाओं में अॅन्तराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हुए हैं। डॉ चित्ररेखा शिक्षा के क्षेत्र में रचनात्मकता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण व क्रियात्मक अनुसंधानों को बढ़ावा देने में विश्वास रखती हैं ।