तीन दिन की Change the Script कार्यशाला के बाद आज दोपहर की फ्लाइट से मुझे वापस देहरादून आना था।मैं सुबह 6 बजे से एक ऑटो में बैठकर बैंगलोर की सड़कों पर घूम रही थी, पीछे बैठे सुबह की ठंडी ठंडी हवा और सुहाने मौसम का मज़ा लेते हुए …… एम.जी. रोड बैंगलोर,सेंट मैरी चर्च बेसिलिका, एम चिन्नास्वामी स्टेडियम, कर्नाटक विधानसभा,सोमेश्वर मंदिर,बेंगलुरु पैलेस, उल्सूर झील। जितनी जगह वो ऑटो वाले मुझे घुमा सकते थे, एक अच्छे टूरिस्ट गाइड की तरह घुमा रहे थे…वहाँ के बारे में बता रहे थे…. साथ ही एक अच्छे फोटोग्राफर का काम भी कर रहे थे। ये पहली बार था कि फोटो खींचने वाला खिचवाने वाले से ज़्यादा उत्सुक थे। लगभग सभी जगह आस पास घूमने के बाद थोड़ा समय बचा तो उस ऑटो ड्राइवर ने मुझसे पूछा- आप किस कास्ट ( जाति ) से हो?
मैंने बड़े आश्चर्य से पूछा आपने ये सवाल पूछा ही क्यों? (कई बार हम अपने चश्मे से कुछ और ही देख रहे होते हैं मुझे लगा इस तरह की बात करना ही अपराध है)
वो थोड़ी देर चुप रहे फिर बोले हाँ! ये सवाल पूछना ज़रूरी नहीं था पर इसलिए पूछा जिससे मैं आपको उस तरह की जगह पर घुमाने ले जा सकूं…. जैसे मैं मुस्लिम हूँ, मुझे एक मस्जिद में जाकर अच्छा लगेगा। यदि आप ईसाई हो तो मैं चर्च ले जाऊं…. यदि हिन्दू हो तो मंदिर ले जाऊं….. या गुरुद्वारा….!! अच्छी जगह तो सब होती हैं लेकिन आप जिस धर्म को मानते हो, वहाँ पर आप ज़्यादा बेहतर कनेक्ट कर पाओगी और अच्छा महसूस करोगी…. बात बस इतनी सी है….।
बात बस इतनी सी थी लेकिन मैंने सच में बात को आसान नहीं रहने दिया था… मैं किसी एक बात को पकड़ बैठी थी कि इस बारे में बात ही क्यों हो? बात हो लेकिन उसकी स्वीकार्यता होना ज़रूरी है मुझे उससे बात कर लगा जीना और पढ़ना अलग बातें हैं। मैं समावेशन पढ़ रही थी और वो जी रहे थे …. जिस तरह से उनके मन में सभी धर्मों के प्रति सम्मान का भाव था।
मैंने बैगलोर की कार्यशाला से सड़क तक बहुत कुछ सीखा और जाना है। मैं वहाँ पहुंची ऐसे कि बैंगलोर में ड्रीम ए ड्रीम द्वारा चेंज द स्क्रिप्ट थीम पर एक कार्यशाला आयोजित की गई थी।किसी दूसरे राज्य में इस तरह की किसी भी कार्यशाला में यह मेरा पहला प्रतिभाग था। मैं अपने अधिकारियों श्रीमती आशा पैन्यूली और श्री भगवती प्रसाद मैंदोली जी के साथ में कार्यशाला में प्रतिभाग करने पहुंची। वहां पर श्री पंकज जी के अलावा सभी चेहरे मेरे लिए नए थे। एक सुंदर सी लोकेशन पर हमारे रहने की व्यवस्था थी जिसमें मुझे किसी के साथ रूम शेयर करना था। मैं जैसे ही कमरे में गई, बेड पर एक टी – शर्ट और एक बैग पड़ा था। टी – शर्ट पर मेरे नाम का स्टीकर लगा था। बैग खोल कर देखा तो उसमें कुछ चॉकलेट, मिठाइयां, ड्राई फ्रूट्स और एक छोटी सी डायरी उसके साथ एक किताब भी रखी थी। कार्यक्रम का शेड्यूल भी उसी में रखा था। बैग खोलते हुए जो खुशी महसूस हुई तो एहसास हुआ कि इस उम्र में भी छोटी-छोटी चीज़े हमारे लिए कितने मायने रखती हैं।
मैंने सामने वाले बेड पर देखा तो टी – शर्ट पर अल्पा निगम नाम लिखा था। मैं अपने बेड पर आराम करने लगी तो कुछ ही देर में मैम ने मेरे कमरे में प्रवेश किया। उन्होंने अपना नाम अल्पा निगम बताया और बताया कि वह प्राथमिक में हेड टीचर हैं और गोरखपुर यूपी से हैं। उनको अपने कमरे में पाकर मुझे खुशी हुई लेकिन नींद बहुत ज्यादा आ रही थी, तो मैं सो गई। अगली सुबह जब नाश्ते के लिए गए तो देखा कि अलग-अलग टेबल पर अलग-अलग समूह में लोग बैठे हुए हैं और खूब सारी बातें कर रहे हैं। इस बार फिर अल्पा मैम और मैं साथ ही बैठे। सब चेहरे नए थे तो बात करने में एक थोड़ी सी हिचकिचाहट थी।
उसके बाद सभी तैयार होकर हॉल में मिले जहां पूरे दिन कार्यक्रम होना था। कार्यक्रम शुरू हुआ तो बिलकुल बातचीत की अंदाज में।हमारे सामने किशोर युवा बैठे थे। उन्होंने अपने जीवन की प्रेरक घटनाएं सभी से साझा की, सभी को बताया कि उन्होंने किस तरह से मुसीबतों का सामना किया। मुझे उनमें से जो जो कुछ याद है, एक लड़का था जो वीडियो बनाने और एक्टिंग को लेकर बहुत ही ज्यादा आवेशपूर्ण था लेकिन उसके लुक को लेकर उसका खूब मजाक बनाया गया। जब उसने अपने टैलेंट की कदर न पाई तो उसने अपना खुद का यूट्यूब चैनल शुरू किया जिसमें उसे खूब सफलता मिली। उसे नेटफ्लिक्स से एक ऑफर मिला जिस पर वह काम करने वाला है। वहां एक सिंगल मदर भी थी जो अपने बच्चों की स्वयं देखभाल कर रही थी साथ ही वह काम भी करती थी काम करते-करते कई बार रात हो जाती तो उनके पड़ोस वाले और रिश्तेदार कहते हैं कि तुम लड़की हो, इतनी रात को आना जाना तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। उसने जो एक सवाल सभी से किया उस सवाल ने सभी के दिल को झंझोर दिया था, “मैं अपने काम से बाहर गई हूं, देर रात से आती हूं, तो मुझे क्यों खतरा है? खतरा उन्हें क्यों नहीं जो मेरे लिए यह मेरी जैसी लड़कियों के लिए गलत विचार रखते हैं? आप मुझे क्यों वापस आने को बोलते हो? आप उन्हें क्यों नहीं समझाते, आप उनसे क्यों नहीं सवाल करते जो मेरे लिए खतरा बने हुए हैं?”
वहाँ पर विभिन्न परिवेश, संस्कृति और देश दुनिया के सभी लोगों का समावेशन था।मूक-बधिर कई साथी प्रतिभाग कर रहे थे जिनके लिए तीन इंटरप्रेटर वहाँ उपलब्ध थे जिनके माध्यम से हम उनको समझ पा रहे थे और वो हमें।वहाँ हिंदी अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लोग अपनी बात रख रहे थे, तो भाषा से भी कोई दूरी महसूस नहीं हुई। इतनी विविधता होते हुए भी सभी एक दूसरे को समझ पा रहे थे और दूसरे के विचारों को सम्मान दे रहे थे।मुझे एक एक्टिविटी याद आ रही है जिसमें एक लाइन पर लगभग 10-12 साथी खड़े थे और हमें दूसरी तरफ़ रखी पट्टी तक पहुंचना था। टास्क ये था कि सभी एक साथ पहुंचें। हमसे पहले एक ग्रुप ने किया पर सभी का ध्यान खुद पर ही था तो कोई आगे और कोई पीछे रह गए। एक्टिविटी का उद्देश्य पहुंचने के बजाय साथ पहुंचना था।फिर हमारे समूह की बारी थी हमारे समूह में बातचीत हुई पर जब कोई हल न निकला तो हमारे साथ एक लड़की थी जो बस हमारे हाव भाव से समझ पा रही थी कि कोई हल नहीं निकल पा रहा तो उसने हमें इशारों में बताया कि यदि हम सब एक पैर से सटाकर दूसरा पैर रखें फिर अगला पैर पिछले पैर से लगाकर आगे कदम बढ़ाएं तो हम एक साथ पहुंचेंगे।उसके आईडिया से सभी के चेहरे खिल उठे। हम सभी ने उसकी बात मानी और लगभग एक साथ पहुंचे सभी बहुत खुश थे एक साथ पहुंचने का मजा ही और था… एक्टिविटी के बाद शाम के समय मैं अपनी साथी अल्पा मैम के साथ घूमने जा रही थी वो बहुत धीरे धीरे चल रही थी, तो मुझे ये अच्छा नहीं लग रहा था। मैं अपनी मस्ती में तेज़ तेज़ चलकर काफ़ी आगे निकल गई। अचानक मुझे गतिविधि के बाद बोली गई एक लाइन याद आई… कहीं पहुंचना उद्देश्य नहीं है, साथ चलना उद्देश्य है…। मैंने सोचा मुझे जाना भी कहां है यदि साथ चलूंगी तो सफ़र का आनंद भी आएगा। ये सोचते ही मेरे कदम धीमे हो गए और हम दोनों साथ साथ चलने लगे। फिर हम बातें करते हुए ख़ूब घूमे और यादगार पल हमने साथ में बिताए।मैंने देखा कैसे छोटी छोटी एक्टिविटी हमारे जीवन में शामिल होकर हमारी सोच पर एक बड़ा असर डालती हैं।मुझे याद है वहाँ पर एक ऐसी एक्टिविटी हुई थी जिसमें हमें किसी भी साथी को चुनना था और उससे अपने जीवन की कोई घटना साझा करनी थी जिसके आधार पर सुनने वाले व्यक्ति ने आपकी कम से कम 10 विशेषताएं बतानी थी। इसमें मेरे साथ एक साथी थे जिन्होंने इंटरप्रेटर की मदद से मुझे अपनी कहानी बताई कि कैसे उनका फेवरेट सब्जेक्ट साइकोलॉजी था, लेकिन भारत में मूक बधिर के लिए कोई सुविधा न होने के कारण उन्होंने अपना विषय बदलकर कॉमर्स की पढ़ाई की। उनको जॉब से रिजेक्शन मिली क्योंकि उनकी इंग्लिश अच्छी नहीं थी लेकिन उन्होंने फिर धीरे धीरे इसमें सुधार किया, इंग्लिश मूवी देखी, ऑनलाइन स्टडी की और आज उनकी इंग्लिश पहले से काफ़ी अच्छी है। इस तरह के कई चुनौतियों से पार आते हुए अभी पढ़ रहे हैं और आगे बढ़ रहे हैं…..। मुझे इस कहानी में बहुत सारे सकारात्मक पहलू लगे और मैंने इंटरप्रेटर की मदद से उनको बताया कि मेरे जीवन का यह पहला अनुभव था जब मैं उस तरह से कम्युनिकेट कर रही थी। कई सारे अनुभव मेरे लिए एकदम नए थे जो मैंने इस कार्यशाला में लिए।सुबह मैं जब मॉर्निंग वॉक के लिए सड़क पर निकलती तो नारियल पानी वाले, तरह तरह के केले के बने पकोड़े वड़ा पाव और महिलाओं के बालों पर लगा गज़रा आकर्षित करता था। तो मैंने अपने लिए अल्पा मैम के लिए दो दिन गजरे खरीदे और पूरे दिन हमारा कमरा गजरे से महकता रहा…अल्पा मैम का गजरा बार बार उनके बालों से फिसल जाता पर वो उसे सम्हाले हुए रही और सारा दिन हम एक दूसरे के गजरे को देखकर खुश होते रहे… हम जब छोटी छोटी चीज़ों में खुशियां देखने लगते हैं तो बस हमारा होना ही काफ़ी होता है।
वहाँ पर एक एक्टिविटी हुई जो भेदभाव को लेकर थी जाति, धर्म, लिंग, आर्थिक कई आधारों पर भेदभाव हर दिन होते रहते हैं पर कई बार बताने की हिम्मत नहीं होती, कई बार कोई सुनने वाला नहीं होता… पर वहाँ पर जितना साहस बताने वालों के अंदर था, उतना ही सुनने वालों के अंदर भी। बताने वाले वो थे जिनके साथ भेदभाव हुआ था, वो बीच वाले गोले में आते गए और सुनने वाले बाहर वाले गोले में बैठे थे। किसी समय कोई बाहर होता तो अगली श्रेणी में वह अंदर हो सकता था। अब जब हमारे साथ भेदभाव होता है तो हम कई बार लाचार होते हैं क्योंकि इसमें पूरा सिस्टम होता है जिससे लड़ना इतना आसान नहीं होता, लेकिन बाहर के गोले में हम इस स्तर पर होते हैं कि हम कोई पहल कर सकें। यदि जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है तो उच्च जाति वाला किसका फायदा न ले तो इस सिस्टम को तोडना बहुत आसान हो सकता है। हमारी क्या जिम्मेदारी बनती है जब हम शिकार नहीं बल्कि बाहर वाले गोले में हैं जहां या तो हम दोषी हैं या हमें कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता है… इस गतिविधि ने हमें सोचने पर मजबूर किया और उस सोच ने हमें हर बार क़दम उठाने के लिए मजबूत किया।
रूमी की कविता जो कार्यशाला में सभी ने गाई थी “out beyond ideas of wrongdoing and rightdoing, there is a field. I’ll meet you there.”
“सही और गलत के परे यह एक क्षेत्र है मैं तुम्हें वहाँ मिलूंगा। ”
मेरे मन में जब भी गूँजती है तो मुझे उस कार्यशाला में बिताए पल ही उस क्षेत्र से लगते हैं शायद वह क्षेत्र ऐसा ही कुछ होता होगा। मैं फिर-फिर उस क्षेत्र में जाना चाहती हूँ। कई साथियों से परिचय हुआ। मैं किसी का भी नाम नहीं लिख पाई, पर उनकी छवि मेरे मन मस्तिष्क में अंकित हुई है।वो सभी इस यात्रा पर मेरे साथ रहे आगे यादों में रहेंगे इसके लिए मैं उनकी आभारी हूँ। इस तरह से ये सात दिनों का अनुभव जीवन के अविस्मरणीय अनुभवो से बढ़कर मेरे जीने के तरीके में बदलाव लेकर आया है, मैं शुक्रगुज़ार हूँ कि ड्रीम अ ड्रीम ने मुझे इस कार्यशाला का हिस्सा बनने का अवसर दिया।
लेखिका के बारे में:
अमृता नौटियाल, केदारनाथ की भूमि रुद्रप्रयाग से हैं।वर्तमान में TGT विज्ञान के रूप में अटल उत्कृष्ट राo इ o का o तैला सिलगढ़ में अध्यापन कार्य कर रही हैं। शैक्षिक योग्यता M. Sc., M. Ed., साथ ही शिक्षाशास्त्र में नेट की परीक्षा उत्तीर्ण की है।लिखने -पढ़ने के अलावा पेंटिंग,संगीत, शिक्षा में नवाचार में इनकी गहरी रूचि है। ’21 techniques of mindfulness’ पुस्तक की लेखिका हैं।
About the Author:
Ms Amrita Nautiyal is MSc MEd and has qualified NET Education and is currently TGT Science at AUGIC Jakholi, Rudraprayag. She is an avid reader, takes keen interest in writing, painting and music. She is the author of a book titled ‘21 techniques of mindfulness’.