आनन्दम् के साथ सफ़र

2019 में सुदूर पहाड़ी क्षेत्र में मेरी जॉइनिंग टीजीटी साइंस की पद पर सरकारी विद्यालय में हुई। विद्यालय में कक्षा 6 से 12 तक करीब 350 बच्चे थे। बच्चों के साथ काम करते हुए शुरुआत में विज्ञान के सिद्धांत और प्रयोगात्मक कक्षाएं चलती रही। कुछ-कुछ नया करने की सोचती तो लगता अभी कुछ बच्चे प्राथमिक दक्षताएं ही पूरा नहीं कर पा रहे हैं तो चिढ़ भी होती। मुझे हमेशा लगता कि बच्चों और मेरे बीच में कुछ तो गायब है। कोई भी कक्षा का उद्देश्य तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक बच्चा और शिक्षक संवेगात्मक रूप से न जुड़े हो।

लगभग 6 माह बाद हमारे विद्यालय में आनन्दम् पाठ्यचर्या के रूप में एक नया विषय आया, जिसके संचालन की जिम्मेदारी मुझे दी गई। जिसके मुख्य अंग थे ध्यान देने की प्रक्रिया (जो हमारा परिचय अपने आप से करवाती है), कहानी (जो बच्चों के दैनिक जीवन में चल रही बातों को लेकर चर्चा का अवसर देती है), कुछ गतिविधियां होती जिसमें सुनना, टीमवर्क, सहयोग जैसी कई भावनाओं को लेकर काम होता है। इसके अलावा अभिव्यक्ति का एक सत्र होता है, जिसमें बच्चे पूरे सप्ताह भर किसी एक मानवीय मूल्य जैसे साहस,करुणा, सम्मान, कृतज्ञता, समानुभूति आदि को अपने आसपास या स्वयं में देखते हैं और उस पर बातचीत करते हैं। कुछ ही दिनों में इन कक्षाओं में काम करते हुए बच्चों और मेरे बीच में एक गहरा संबंध स्थापित होने लगा, वे अपने विचार रखने लगे मुझे प्रश्न करने लगे यहां तक की अपनी समस्याओं पर भी खुलकर चर्चाएं करने लगे।

उस कक्षा में 6 से 8 तक के विद्यार्थी होते थे। कक्षा आठ में एक लड़की थी, जो दृष्टिहीन थी और विद्यालय आने का उसका उद्देश्य सिर्फ साथियों के साथ बैठना ही होता। किताबें और कॉपियों से उसकी कुछ खास दोस्ती नहीं थी लेकिन आनन्दम् की कक्षा में उसे जीवन के अनुभवों को लेकर बातचीत करनी होती तो वह खुलकर बोलती।बच्चे उसकी बातों को ध्यान से सुनते तो उसकी खुशी देखते ही बनती थी। उसका आत्मविश्वास धीरे-धीरे बढ़ने लगा और वह  शैक्षणिक गतिविधियों में भी आगे आने लगी।

बच्चे अपने अनुभव साझा करते तो बताते हैं कि किस प्रकार से वह माइंडफुल लिसनिंग को कक्षा में पढ़ते हुए प्रयोग कर रहे हैं,यह जानकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने अपनी सभी कक्षा के शुरू होने से पहले ध्यान देने की प्रक्रिया का 1 मिनट रखना शुरू कर दिया जिसमें सांसों पर ध्यान देना,ध्यान देकर सुनना तो कभी ध्यान देकर देखने का अभ्यास करवाती। बच्चे बड़े शांत भाव से यह अभ्यास करने लगे। मैंने देखा कि बच्चे चित्रों और शब्दों के प्रति बड़ा उत्साह दिखाते हैं।

आनन्दम् में एक एक्टिविटी है – वर्ड एसोसिएशन, जिसमें हम देखते हैं कि एक शब्द को सुनने पर उससे जुड़े कितने शब्द हमारे मन में आते हैं। ऐसे ही विचारों की श्रृंखला बन जाती है। मैंने यह एक्टिविटी विज्ञान पढ़ते हुए प्रयोग की जैसे मैंने बोला क्लोरोफिल तो एक बच्चा बोल पड़ा ग्रीन पिगमेंट,अगला बोल पड़ा फोटोसिंथेसिस इसी प्रकार से अनेक शब्द जैसे प्लांट, सनलाइट, कार्बोहाइड्रेट,सॉइल, फूड से पूरी कक्षा गूँज पड़ी। इस तरह बच्चे शब्दों को लिख लेते तो पूरी कहानी उनके सामने स्पष्ट हो जाती। इसके बाद मैं चित्रों पर प्रयोग करने का सोची, तो बच्चों को एक शब्द बोला- फोटोसिंथेसिस, यह सुनकर उनके मन में जो भी आया उसी को पेपर में चित्र के रूप में उतरने को बोला। बच्चे ध्यान पूर्वक चित्र बनाने लगे। लगभग हर बच्चा इस प्रकार से क्लास में पूरी तरह से शामिल होने लगा।

अब हमारी सभी कक्षाएं माइंडफुलनेस की छोटी-छोटी गतिविधियों से शुरू होती हैं तो कक्षा में बच्चों का अटेंशन लाना बहुत आसान रहता है। वह लंबे समय तक फोकस्ड रह पाते हैं। अभी यह परिणाम छोटे समय के लिए ही देखने को मिलते हैं, किंतु मैं मानती हूं यह सभी क्रियाएं बच्चों को जीवन के हर क्षेत्र में मदद करेंगे और शिक्षा अपने वास्तविक अर्थों में पूर्ण होगी।

 

लेखिका के बारे में: 

अमृता नौटियाल, केदारनाथ की भूमि रुद्रप्रयाग से हैं।वर्तमान में TGT विज्ञान के रूप में अटल उत्कृष्ट राo इ o का o तैला सिलगढ़ में अध्यापन कार्य कर रही हैं। शैक्षिक योग्यता M. Sc.,  M. Ed. , साथ ही शिक्षाशास्त्र में नेट की परीक्षा उत्तीर्ण की है।लिखने -पढ़ने के अलावा पेंटिंग,संगीत, शिक्षा में नवाचार में इनकी गहरी रूचि है। ’21 techniques of mindfulness’ पुस्तक की लेखिका हैं।

About the Author:

Ms Amrita Nautiyal is MSc MEd and has qualified NET Education and is currently TGT Science at AUGIC Jakholi, Rudraprayag. She is an avid reader, takes keen interest in writing, painting and music. She is the author of a book titled ‘21 techniques of mindfulness’.



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