प्रारंभिक शिक्षा और चुनौतियां ।

नई शिक्षा नीति प्रारंभिक शिक्षा व्यवस्था में आमूल चूल तथा क्रांतिकारी परिवर्तन लेकर आई है । सबसे बड़ा परिवर्तन प्री प्राइमरी शिक्षा को लेकर आया है जो कि अभी तक सरकारी स्कूलों में उपलब्ध नहीं थी । इसकी शुरुआत ऐसे आंगनवाड़ी केंद्रों से कर दी गई है जो कि किसी राजकीय प्राथमिक स्कूल के ही परिसर में संचालित हो रहे हैं । हालांकि इनमें कार्यरत आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को अभी ECCE में प्रशिक्षित नहीं किया गया है इनके प्रशिक्षण की रूपरेखा अभी तैयारी की अवस्था में है ।

आने वाले समय में निश्चित ही स्वतंत्र रूप से संचालित हो रहे आंगनवाड़ी केंद्रों में भी प्री प्राइमरी शिक्षा प्रारंभ हो सकेगी जिसका बहुत बड़ा लाभ ग्रामीण क्षेत्रों में निवास रत बच्चों को होगा जो कि किसी प्ले स्कूल इत्यादि में नहीं जा पा रहे थे । प्री प्राइमरी कक्षाओं के संचालन से एक उम्मीद यह भी है कि सरकारी स्कूलों में नामांकन में वृद्धि भी देखी जा सकती है क्योंकि पूर्व में सरकारी स्कूलों में सबसे छोटी कक्षा १ में प्रवेश की आयु कम से कम ६ वर्ष निर्धारित थी किंतु अभिभावकों के अनुरोध तथा बच्चे की योग्यता को देखते हुए ५ वर्ष पूर्ण कर चुके बालक को भी प्रवेश दे दिया जाता था ।

अब यह भी समस्या नहीं रहेगी हालांकि अभी भी कक्षा १ में प्रवेश की आयु ६ वर्ष ही निर्धारित कर दी गई है किंतु बाल वाटिका की शुरुआत से बच्चा कक्षा १ में कुछ तो सीख कर आएगा ही । वर्तमान में नई शिक्षा नीति की अनुशंसाओं के आलोक में अध्यापकों का भी प्रशिक्षण प्रारंभ कर दिया गया है जिसमे कि उन्हें  निपुण भारत मिशन के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु दक्ष किया जा रहा है । मिशन निपुण भारत के अंतर्गत वर्ष २०२५ तक कक्षा ३ तक पहुंचने वाले समस्त छात्र छात्राओं को प्रारंभिक गणित तथा भाषा में निर्धारित योग्यता प्राप्त कराए जाने पर बल दिया जा रहा है ताकि बच्चे कक्षा ३ से आगे की अपनी पढ़ाई बिना किसी भय और किसी भी विषय से डरे बिना करते रहें ।

लोक शिक्षा के क्षेत्र में निपुण भारत मिशन भी अपने ही आप में एक अत्यंत क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है यदि इसका संचालन सही प्रकार से किया जा सके तो । इसके संचालन में सबसे बड़ी कठिनाई ऐसे दुर्गम और दूर दराज के क्षेत्रों में आ सकती है जहां पर मानक के अनुरूप शिक्षक तैनात नहीं है तथा बड़ी संख्या में ऐसे क्षेत्रों के प्राइमरी स्कूलों में सभी ५ कक्षाओं का संचालन मात्र एक ही शिक्षक द्वारा किया जा रहा है । अतः किसी भी प्रकार से ऐसे क्षेत्रों में जल्द से जल्द शिक्षकों की तैनाती की जानी आवश्यक होगी नहीं तो ऐसे क्षेत्रों के बच्चे आवश्यक दक्षता की प्राप्ति से वंचित रह जाएंगे । ऐसे क्षेत्रों में निर्धारित समय हेतु मानदेय पर स्वयंसेवी शिक्षकों की सेवा लेने पर विचार किया जा सकता है ।

ऐसे शिक्षक प्रशिक्षण केंद्रों से भी MoU किया जा सकता है जहां के प्रशिक्षु इन क्षेत्रों में आकर निर्धारित मानदेय पर निश्चित अवधि तक अपनी सेवा देने को तैयार हों तथा बाद में स्थाई नौकरी हेतु इन्हे इनके कार्य के अनुभव के आधार पर कुछ अतिरिक्त अंक देकर भर्ती होने में सहायता प्रदान की जा सकती है ।

प्रारंभिक शिक्षा की दूसरी बड़ी चुनौती विद्यालय भवनों की स्थिति भी है । अधिकांश राज्यों में प्राइमरी और जूनियर हाई स्कूल के भवन निर्माण का कार्य अभिभावकों द्वारा बनी हुई विद्यालय प्रबंध समिति द्वारा ही कराया जाता है जिसकी देखरेख हेतु संविदा पर भर्ती जूनियर इंजीनियर रखे जाते हैं । देखने में आया है कि SMC भवन निर्माण में तकनीकी रूप से सक्षम नहीं हो पाती है तथा संविदा पर रखे JE भी निर्मित भवन की खराब गुणवत्ता हेतु जिम्मेदार नहीं ठहराए जा सकते अतः किसी भी प्रकार तत्काल ही समस्त प्रकार के निर्माण कार्य कार्यदाई संस्थाओं के ही द्वारा उनकी देख रेख में ही कराए जाने की नितांत आवश्यकता है ताकि विद्यालय में कार्यरत शिक्षक भी बिना किसी विवाद में फंसे अपना शिक्षण कार्य सुचारू रूप से करते रहें । SMC द्वारा निर्माण की अवस्था में विद्यालय में कार्यरत शिक्षक पर स्थानीय लोगों का भी बहुत बड़ा दबाव होता है तथा कई बार आपसी विवाद के ही चलते विद्यालय भवन या तो आधा अधूरा ही बन पता है या फिर उसकी गुणवत्ता भी सही नहीं रहती जिसमे कि शिक्षक की कोई भी भूमिका नहीं होने पर भी उन्ही को दोषी भी ठहरा दिया जाता है।

देखने में यह भी आया है कि उपरोक्त तथा अन्य काफी प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के उपरांत भी प्रारंभिक शिक्षा में कार्यरत शिक्षक पूर्ण मनोयोग से अपना कार्य संचालित कर रहे हैं । एकल शिक्षक होने के उपरांत भी शिक्षण कार्य करने के ही साथ अन्य कई प्रशासनिक कार्य भी कुशलतापूर्वक निपटाते हैं ।

यह भी देखने में आया है कि प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत शिक्षकों को उनकी योग्यता के अनुरूप शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों जैसे DIET, SCERT, जिला समन्वयक, ब्लॉक समन्वयक, संकुल समन्वयक इत्यादि जैसे पदों पर कार्य करने के अवसर भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं ऐसे में प्रारंभिक शिक्षा में कार्यरत शिक्षकों का मनोबल बनाए रखने हेतु तथा इनके अनुभव का लाभ उठाए जाने हेतु यह भी अत्यंत आवश्यक है कि निर्धारित योग्यता प्राप्त जैसे कि M.Ed, NET, PhD प्राप्त अनुभवी शिक्षकों को भी अन्य शिक्षकों के समान अवसर प्रदान कराए जाने चाहिए ताकि इनके अंदर किसी भी प्रकार से कमतर आंके जाने की भावना भी विकसित न होने पाए । अनेक दूर दराज के स्थानों पर प्राथमिक विद्यालयों का एकाकीपन भी एक बड़ी समस्या है जहां पर कार्यरत शिक्षक को किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिल पाती ऐसे में ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधियों, सरकार के साथ कार्य कर रहे विभिन्न फाउंडेशन तथा एनजीओ को भी शहर ही नहीं वरन दूर दराज के क्षेत्रों तक अपनी पहुंच बनानी होगी ताकि एकल शिक्षकों को भी किसी न किसी प्रकार की मदद मिल सके ।

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About the Author – Pankaj Kumar is a Deputy Education Officer in Uttarakhand (ensuring the compliance of the Right to Education (RTE) Act in schools at block level)

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